ये जो बाजार है,
दिन चार है
चिंतन-मनन कर,
क्या जीवन का सार है।
जहां, जैसा, जो भी है
मत्यु अवश्यभावी, तो भी है।
चिर - परिचित सा, हर कोई
फिर भी डरा-डरा सा,हर कोई।
ये जो समाचार है,
क्षणभंगुर जीत-हार है
सत्य यही एक,
झूठा ये दरबार है।
धर्म - जाति, मेरा, तेरा
हर किसी को, इसी ने घेरा।
ये जो बयार है,
एक व्यापार है
यहां हर किसी का
हर किसी से निजी व्यवहार है।
इंसानियत ही हो मजहब,
यही मुल्कों की दरकार है,
सार्थक, यही है सबब,
व्यर्थ ये टकरार है।
ये जो परोपकार है,
अतुल्य, अमर, साकार है
वही मोक्ष से सरोकार है,
जिसके जीवन का ये आधार है।
✍️Seema choudhary
दिन चार है
चिंतन-मनन कर,
क्या जीवन का सार है।
जहां, जैसा, जो भी है
मत्यु अवश्यभावी, तो भी है।
चिर - परिचित सा, हर कोई
फिर भी डरा-डरा सा,हर कोई।
ये जो समाचार है,
क्षणभंगुर जीत-हार है
सत्य यही एक,
झूठा ये दरबार है।
धर्म - जाति, मेरा, तेरा
हर किसी को, इसी ने घेरा।
ये जो बयार है,
एक व्यापार है
यहां हर किसी का
हर किसी से निजी व्यवहार है।
इंसानियत ही हो मजहब,
यही मुल्कों की दरकार है,
सार्थक, यही है सबब,
व्यर्थ ये टकरार है।
ये जो परोपकार है,
अतुल्य, अमर, साकार है
वही मोक्ष से सरोकार है,
जिसके जीवन का ये आधार है।
✍️Seema choudhary
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