ये मैं हूं या कोई ओर है,
अन्तर्मन मे कैसा ये शोर है।
बेजान सा तन है या मुझमें मैं
जिंदा हुआ
पर कटे हैं मगर आजाद कोई
परिदां हुआ
गैर से विरह की व्यथा है
या
स्वयं से मिलन की खुशी है
किसी सत्य की तलाश में
ये कैसी खुदकुशी है।
टूट के हूं चूर, या कोई गुरूर है,
बेसुध सा मैं या कोई सुरुर है।
ये उजडा है चमन या पल्लवित कलियों का आगाज है,
कराहता सा दामन मेरा या
बुलंदियों भरी आवाज है।
बेगानो से तिरस्कृत हुआ या
आत्मस्वीकृत हुआ
ये कैसी शक्ति से चमत्कृत हुआ।
बिराने आइने सेआत्मज्ञान की ये
अवस्था रही,
विधि के विधान की ये कैसी
व्यवस्था रही। seema Choudhary ✍️